राजस्थानी मुहावरे, कहावतें एवम् लोकोक्तियाँ के नोट्स :
राजस्थानी मुहावरे, कहावतें, एवम् लोकोक्तियों के महतवपूर्ण नोट्स यहाँ आपको उपलब्ध करवाए जा रहे है | जो राजस्थान की सभो प्रतियोगी परीक्षाओं जिनके पाठ्यक्रम में इस टॉपिक को शामिल किया गया है | दोस्तों ये टॉपिक Rajasthan BSTC, PTET, REET, Patwar, Sub-Inspector, and High Court Group-D के लिए विशेष रूप से उपयोगी है |
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Rajasthani Muhaware, kahawate avm lokoktiyan |
राजस्थानी मुहावरे
- आंधी भैंस बरू में चरै - बिना सोचे समझे नुकसान करना
- अक्कल बड़ी के भैंस - पशु बल से बुद्धि बल श्रेष्ठ है
- अहारे ब्योहारे लज्जा न कारे - भोजन और व्यवहार में लज्जा नहीं करनी चाहिए
- अस्सी बरस पूरा हुया तो बी मन फेरां में रह्या - वृद्ध होने पर भी वासना नहीं जाना
- अल्ला अल्ला खैर सल्ला - शिष्टाचार के अतिरिक्त कुछ लेना न देना
- अरडावतां ऊँट लदै - किसी की दीन पुकार पर भी ध्यान न देना
- अरजन जसा ही फरजन - जैसा पिता है वैसा ही पुत्र है
- अभागियों टाबर त्युंहार नै रूसै - अभागा बच्चा त्योहार के दिन रूठता है
- अनियूँ नाचै, अनियूँ कूदै, अनियूँ तोडै़ तान - अन्न के बल पर ही नाच-कूद और राग-रंग सूझते हैं
- अणदोखी ने दोख, बीने गति न मोख - जो निरपराध पर दोष लगावे, उसे गति या मोक्ष कुछ नहीं मिलता
- इसो गुड़ गीलो कोनी - यह इतना नरम नहीं कि कोई कहे, यह वैसा कर ले
- अठे गुड़ गीलो कोनी - यह आदमी ऐसा सीधा नहीं है कि कोई उसे ठग ले
- अठे चाय जैंकी उठे बी चाय - सत्पुरुष दीर्घजीवी नहीं होते
- अग्रे अग्रे ब्राह्मणा, नदी नाला बरजन्ते - ब्राह्मण खतरे से दूर रहता है
- अठे किसा काचर खाय है? - यहाँ दाल नहीं गलेगी
- अक्कल बिना ऊँट उभाणा फिरे - मूर्ख लोग बुद्धि न होने के कारण साधनों का उचित प्रयोग नहीं कर पाते
- अक्कल कोई कै बाप की कौनी - बुद्धि किसी के बपौती नहीं
- अम्बर कै थेगली कौनी लागै - फटे आकाश को सिया नहीं जा सकता
- अण मिले का सै जती हैं - भोग न मिलने पर ब्रह्मचर्य का पालन स्वयं हो जाता है
- आंधी आई ही कोनी, सूंसाट पैली ही माचगो - किसी कार्य के होने से पहले ही ढिंढोरा पीटना
- आंधो बाटै सीरणी, घरकां नै ही दे - अपना स्वार्थ सिद्ध करना
- आंख कान में चर आंगल को फरक है - सत्य और झूठ में बहुत अंतर होता है
- आए लाडी आरो घालां, कह पूंछ ई आरै में तुड़ाई है - किसी योजना से पहले ही उस काम के लिए तैयार रहना
- आसवाणी, भागवाणी - आश्विन माह में वर्षा भाग्यवानों के यहाँ होती है
- आल पड़ै तो खेलूं मालूं, सूक पड़ै तो जाऊं - सुख के समय साथ रहना, दुःख आते ही छोड़कर चले जाना
- आपकी छाय नै कोई खाटी कोनी बतावै - अपनी वस्तु को कोई बुरा नहीं बतलाता
- आपकी मा ने डाकण कुण बतावै? - अपनी वस्तु को कोई बुरा नहीं कहता
- आपके लागै हीक में, दूसरो के लागे भीत में - दूसरे के प्रति कोई सहानुभूति न होना
- आपको कोढ़ सांमर सांमर ओढ़ - अपने किए का फल भोगने के अलावा कोई चारा नहीं होना
- आपको टको टको दूसरै को टको टकुलड़ी - अपनी वस्तु को ही बड़ी समझना, दूसरे की वस्तु को तुच्छ समझना
- आपको बिगाड्यां बिना दूसरां को कोनी सुधरै - परोपकार करने के लिए स्वार्थ को छोड़ना पड़ता है
- आपको सो आपको और बिराणू लोग - अपना, अपना ही होता है, पराया, पराया ही होता है
- आ बलद मनै मार - जानबूझकर विपत्ति में पड़ना
- आम खाणा क पेड़ गिणना - मनुष्य को अपने काम से मतलब रखना चाहिए
- आम नींबू बाणियो, कंठ भींच्यां जाणियो - आम, नींबू और बनिया, इनको दबाने से ही रस निकलता है
- आम फलै नीचो नवै, अरंड आकासां जाय - सज्जन जब बड़ा बनता है तो नम्र होता है जबकि दुर्जन इतराता है
- आया की समाई पण गया की समाई कोनी - मनुष्य लाभ तो बर्दाश्त कर सकता है पर हानि नहीं
- आयो रात, गयो परभात - बिना रुके तुरंत चले जाना
- आ रै मेरा सम्पटपाट! मैं तनै चाटूं, तू मनै चाट - दो निकम्मे व्यक्तियों का समागम होना
- आंख फडूकै दहणी, लात घमूका सहणी - स्त्री की दाहिनी आँख फड़कने पर कोई संकट सहना पड़ता है
राजस्थानी कहावतें एवम् लोकोक्तियाँ :
- आंधे री गफ्फी बोळै रो बटको।राम छुटावै तो छुटे, नहीं माथों ई पटको।। आंघे और बहरे आदमी से पिंड छुड़ाना कठिन कार्य है।
- आगम चौमासै लूंकड़ी, जै नहीं खोदे गेह। तो निहचै ही जांणज्यों, नहीं बरसैलो मेह।। वर्षाकाल के पूर्व लोमड़ी यदि अपनी ‘घुरी’ नहीं खोदे तो निश्चय जानिये कि इस बार वर्षा नहीं होने वाली है।
- इस्या ही थे अर इस्या ही थारा सग्गा। वां के सर टोपी नै, थाकै झग्गा। संबंधी आपस में एक-दूसरे की इज्जत नहीं उझालते। इसी बात को गांव वाले व्यंग्य करते हुए कहतें हैं कि यदि आप उनकी उतारोगे तो वह भी अपकी इज्जत उतार देगें दोनों के पूरे वस्त्र नहीं है - ‘‘एक के सर पर टोपी नहीं तो दूसरे ने अंगा नहीं पहना हुआ है।’’
- आज म्हारी मंगणी, काल म्हारो ब्याव। टूट गयी अंगड़ी, रह गया ब्याव।। जल्दीबाजी में अति उत्साहित हो कर जो कार्य किया जाता है उसमें कोई न कोई बाधा आनी ही है।
- कुचां बिना री कामणी, मूंछां बिना जवान। ऐ तीनूं फीका लगै, बिना सुपारी पान।। स्त्री के स्तनों का उभार न हो, मर्दों को मूंछें और पान में सूपारी न होने से उसकी सौंदर्यता नहीं रहती।
- दियो-लियो आडो आवै। दिया-लिया या अपना व्यवहार ही समय पर काम आता है।
- धण जाय जिण रो ईमान जाए। जिसका धन चला जाता है उसका ईमान भी चला जाता है।
- धन-धन माता राबड़ी जाड़ हालै नै जाबड़ी। धन आने के बाद आदमी का शरीर हिलना बन्द कर देता है। इसी बात को व्यंग्य करते हुए लिखा गया है कि राबड़ी खाते वक्त दांत और जबड़ा को को कष्ट नहीं करना पड़ता है।
- ठाकर गया’र ठग रह्या, रह्या मुलक रा चोर। बै ठुकराण्यां मर गई, नहीं जणती ठाकर ओर।। ठाकुर चले गये ठग रह गये, अब देश में चोरों का वास है। अब वैसी जननी मर चुकी, जो राजपुतों को जन्म देती थी।
- कहावत का तात्पर्य समाज की वर्तमान व्यवस्था पर व्यंग्य करना है। जिसमें देश में व्याप्त भ्रष्टाचार की तरफ इशारा करते हुए कहा जा सकता है कि अब देश के लिए कोई कार्य नहीं करता। सब के सब ठग हो चुके हैं जो देश को चारों तरफ को लूटने में लगे हैं।
टुकरा दे-दे बछड़ा पाळ्या,
सींग हुया जद मारण आया।
मां-बाप बच्चों को बहुत दुलार से पालते हैं परन्तु जब वह बच्चा बड़ा हो जाता है तो मां-बाप को सबसे पहले उसी बच्चे की लात खानी पड़ती है।
- जावै तो बरजुं नहीं, रैवै तो आ ठोड़। हंसां नै सरवर घणा, सरवर हंस करोड़।। जाने वाले को रोकना नहीं चाहिए, वैसे ही ठहरने वाले को जगह देनी चाहिए। जिस प्रकार हंस को बहुत से सरोवर मिलते हैं वैसे ही सरोवर को भी करोड़ों हंस मिल जाते हैं। अर्थात किसी को भी घमण्ड नहीं करना चाहिए।
- जात मनायां पगै पड़ै, कुजात मनायां सिर चढ़ै। समझदार व्यक्ति को समझाने से वह अपनी गलती को स्वीकार कर लेता है जबकि मूर्ख व्यक्ति लड़ पड़ता है।
- ठावें-ठावें टोपली,बाकी ने लंगोट।ठावें-ठावें टोपली,बाकी ने लंगोट।
शब्दार्थ :- कुछ चुने हुए लोगों को टोपी दी गयी परन्तु शेष लोगों को सिर्फ लंगोट ही मिली
भावार्थ :- कुछ विशेष चयनित लोगों का तो यथोचित सम्मान किया गया परन्तु शेष लोगों को जैसे-तैसे ही निपटा दिया गया / कुछ महत्वपूर्ण कार्यों को कर लिया परन्तु सामान्य कार्यों की उपेक्षा कर दी गयी।
- ठठैरे री मिन्नी खड़के सूं थोड़ाइं डरै ! ठठैरे री मिन्नी खड़के सूं थोड़ाइं डरै ! शब्दार्थ :- ठठैरे ( जो की धातु की चद्दर की पीट -पीट कर बर्तन बनाता है ) के वहां रहने वाली बिल्ली खटखट करने से डरकर नहीं भागती क्योंकि वह तो सदा खटखट सुनती रहती है।
भावार्थ :- किसी कठिन माहौल में रहने-जीने व्यक्ति के लिए वहां की कठिनाई आम बात होती हैं,वह उस परिस्तिथि से घबराता नहीं है।
- कमाऊ आवे डरतो ,निखट्टू आवे लड़तो ! कमाऊ पूत आवै डरतो, अणकमाऊ आवै लड़तो। शब्दार्थ :- कमाने वाला बेटा तो घर में डरता हुआ प्रवेश करता है, लेकिन जो कभी नहीं कमाता वह लड़ाई झगडा करते हुए ही आता है।
भावार्थ :- परिवार में धनार्जन करने वाले व्यक्ति को हर समय अपने मान-सम्मान का ध्यान रहता है, लेकिन निखट्टू को अपनी बात मनवाने का ही ध्यान रहता है।
- ब्यांव बिगाड़े दो जणा , के मूंजी के मेह , बो धेलो खरचे न'ई , वो दडादड देय ! ब्यांव बिगाड़े दो जणा , के मूंजी के मेह , बो धेलो खरचे न'ई , वो दडादड देय ! शब्दार्थ :- विवाह को दो बातें ही बिगाड़ती है, कंजूस के कम पैसा खर्च करने से और बरसात के जोरदार पानी बरसा देने से .
भावार्थ :- काम को सुव्यवस्थित करने के लिए उचित खर्च करना जरुरी होता है,वहीँ प्रकृति का सहयोग भी आवश्यक है
- हूं गाऊँ दिवाळी'रा, तूं गाव़ै होळी'रा । हूं गाऊँ दिवाळी'रा, तूं गाव़ै होळी'रा । शब्दार्थ :- मैं दिवाली के गीत गाता हूँ और तू होली के गीत गाता है।
भावार्थ:- मैं यहाँ किसी प्रसंग विशेष पर चर्चा कर रहा हूँ और तुम असंबद्ध बात कर रहे हो।
- म्है भी राणी, तू भी राणी, कुण घालै चूल्हे में छाणी ? म्है भी राणी, तू भी राणी, कुण घालै चूल्हे में छाणी? शब्दार्थ :- मैं भी रानी हूँ और तू भी रानी है तो फिर चूल्हे को जलाने के लिए उसमें कंडा/उपला कौन डाले ?
भावार्थ :- अहम या घमण्ड के कारण कोई भी व्यक्ति अल्प महत्व का कार्य नहीं करना चाहता है।
- मढी सांकड़ी,मोड़ा घणा ! मढी सांकड़ी,मोड़ा घणा ! शब्दार्थ:-मठ छोटा है और साधु बहुत ज्यादा हैं। (मोडा =मुंडित, साधु)
भवार्थ:- जगह/वस्तु अल्प मात्रा में है,परन्तु जगह/वस्तु के परिपेक्ष में उसके हिस्सेदार ज्यादा हैं।
- आप री गरज गधै नेै बाप कहवावै! आप री गरज गधै नेै बाप कहवावै! शब्दार्थ:-अपनी जरुरत/अपना हित गधे को बाप कहलवाती है।
भावार्थ :-स्वार्थसिद्धि के लिए अयोग्य/ कमतर व्यक्तित्व वाले आदमी की भी खुशामद करनी पड़ती है।
- चिड़ा-चिड़ी री कई लड़ाई, चाल चिड़ा मैँ थारे लारे आई | चिड़ा-चिड़ी री कई लड़ाई, चाल चिड़ा मैँ थारे लारे आई | शब्दार्थ:-चिड़िया व चिड़े की कैसी लड़ाई,चल चिड़ा मैं तेरे पीछे आती हूँ।
भावार्थ :- पति-पत्नी के बीच का मनमुटाव क्षणिक होता है।
- चाए जित्ता पाळो , पाँख उगता ईँ उड़ ज्यासी | चाए जित्ता पाळो , पाँख उगता ईँ उड़ ज्यासी | शब्दार्थ:-पक्षी के बच्चे को कितने ही लाड़–प्यार से रखो,वह पंख लगते ही उड़ जाता है।
भावार्थ :- हर जीव या वस्तु उचित समय आने पर अपनी प्रकृति के अनुसार आचरण अवश्य करते ही हैं|
- पड़ै पासो तो जीतै गंव़ार ! पड़ै पासो तो जीतै गंव़ार ! शब्दार्थ :- पासा अनुकूल पड़े,तो गंवार भी जीत जाता है. (चौसर के खेल में सब कुछ दमदार पासा पड़ने पर निर्भर करता है, उसमें और अधिक चतुराई की आवश्यकता नहीं होती है)
भावार्थ:- भाग्य अनुकूल हो तो अल्प बुद्धि वाला भी काम बना लेता है, नहीं तो अक्लमंद की भी कुछ नहीं चलती।
- नागां री नव पांती अ'र सैंणा री एक। नागां री नव पांती अ'र सैंणा री एक। शब्दार्थ :- उदण्ड/स्वछन्द व्यक्ति को किसी चीज के बंटवारे में नौ हिस्से चाहिए.
भावार्थ:- उदण्ड/स्वछन्द व्यक्ति किसी साझा हिस्से वाली चीज़ या संपत्ति में से अनुचित हिस्सेदारी लेना चाहता है जबकि सज्जन व्यक्ति अपने हक़ के ही हिस्से से ही संतुष्ठ रहता है.
- कार्तिक की छांट बुरी , बाणिये की नाट बुरी , भाँया की आंट बुरी , राजा की डांट बुरी। कार्तिक की छांट बुरी , बाणिये की नाट बुरी , भाँया की आंट बुरी , राजा की डांट बुरी। अर्थ - कार्तिक महीने की वर्षा बुरी , बनिए की मनाही , भाइयों की अनबन बुरी और राजा की डांट-डपट बुरी।
- आळस नींद किसान ने खोवे , चोर ने खोवे खांसी , टक्को ब्याज मूळ नै खोवे , रांड नै खोवे हांसी। आळस नींद किसान ने खोवे , चोर ने खोवे खांसी , टक्को ब्याज मूळ नै खोवे , रांड नै खोवे हांसी। अर्थ - किसान को निद्रा व आलस्य नष्ट कर देता है , खांसी चोर का काम बिगाड़ देती है , ब्याज के लालच से मूल धन भी है डूब जाता है और हंसी मसखरी विधवा को बिगाड़ देती है |
- कुत्तो सो कुत्ते नै पाळे , कुत्तोँ सौ कुत्तोँ नै मारै। कुत्तो सो भैंण घर भाई , कुत्तोँ सो सासरे जवाँई। वो कुत्तो सैं में सिरदार , सुसरो फिरे जवाँई लार। कुत्तो सो कुत्ते नै पाळे , कुत्तोँ सौ कुत्तोँ नै मारै। कुत्तो सो भैंण घर भाई , कुत्तोँ सो सासरे जवाँई। वो कुत्तो सैं में सिरदार , सुसरो फिरे जवाँई लार। अर्थ - कुत्ते को पालना अथ्वा मारना दोनों ही बुरे है। यदि भाई अपनी बहन के घर और दामाद ससुराल में रहने लगे तो उनकी क़द्र भी कम होकर कुत्ते के समान हो जाती है। लेकिन यदि ससुर अपना पेट् भरने के लिए दामाद के पीछे लगा रहे तो वो सबसे गया गुजरा माना जाता है।
- आडे दिन से बासेड़ा ई चोखो जिको मीठा चावळ तो मिले आडे दिन से बासेड़ा ई चोखो जिको मीठा चावळ तो मिले अर्थ - सामान्य दिन कि उपेक्षा 'बासेड़ा'[शीतला देवी का त्यौहार ही अच्छा जो खाने के लिए मीठे चावल तो मिले।
- राधो तू समझयों नई , घर आया था स्याम दुबधा में दोनूं गया , माया मिली न राम ………राधो तू समझयों न'ई , घर आया था स्याम दुबधा में दोनूं गया , माया मिली न राम ! अर्थ - दुविधा में दोनों ही चले गए , न माया मिली न राम, न खुदा ही मिला न विसाले सनम। ......
- जीवते की दो रोटी , मरोड्ये की सो रोटी। …। जीवते की दो रोटी , मरोड्ये की सो रोटी। …। अर्थ - जीते हुए की सिर्फ दो रोटी और मरे हुए की सौ रोटियाँ लगती है। ....
- खाट पड़े ले लीजिये , पीछै देवै न खील आं तीन्यां का एक गुण , बेस्यां बैद उकील। …… खाट पड़े ले लीजिये , पीछै देवै न खील, आं तीन्यां का एक गुण , बेस्यां बैद उकील। …… अर्थ - वैश्या अपने ग्राहक से और वैद्य अपने रोगी से खाट पर पड़े हुए ही जो लेले सो ठीक है, पीछे मिलने की उम्मीद न करे। …इसी प्रकार वकील अपने मुवक्किल से जितना पहले हथिया ले वही उसका ....
- कै मोड्यो बाँधे पाग्ड़ी कै रहै उघाड़ी टाट। …। अर्थ- बाबाजी बांधे तो सिर पर पगड़ी ही बांधे नहीं तो नंगे सिर ही रहे। .....
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