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राजस्थान किसान आन्दोलन, राजस्थान सामान्य ज्ञान नोट्स |
राजस्थान में किसान आंदोलन
- राजस्थान में किसान आंदोलन जागीरदारों, सामंतों आदि के द्वारा आर्थिक कर वसूली व उनके द्वारा किए गए अत्याचारों के विरुद्ध शुरू हुए।
- जागीरदार अपनी विलासिताओं को पूर्ण करने के लिए पर विभिन्न प्रकार के कर और बेगार आदि के रूप में आर्थिक दबाव डाल रहे थे।
- इन्हीं के परिणाम स्वरूप राजस्थान में किसान आंदोलनों का उदय हुआ।
बिजोलिया किसान आंदोलन
- भारत में प्रथम संगठित किसान आंदोलन का श्रेय मेवाड़ के बिजोलिया क्षेत्र को जाता है।
- बिजोलिया के किसानों से 84 प्रकार का लगान वसूल किया जाता था।
- 1903 में राव कृष्ण सिंह ने ऊपर माल की जनता पर चंवरी कर लगा दिया, जिससे परेशान होकर किसानों ने खेतों की परत छोड़ दी।
- जिससे घबराकर रामकृष्ण सिंह ने चंवरी कर( लड़की की शादी में ₹5 कर देना) को हटा दिया और सानू पद के आदि स्थान पर2/5 कर ही लेने की घोषणा की।
- 1906 में पृथ्वी सिंह नया जागीरदार बना, उधर बनते ही जनता पर तलवार बंधाई कर लगा दिया।
- साधु सीताराम दास के आग्रह पर 1916 ई. में बिजोलिया किसान आंदोलन में श्री विजय सिंह पथिक ने प्रवेश किया।
- पथिक जी ने बिजोलिया किसान आंदोलन में नई जान डालने राजनीति गति देने हेतु कानपुर से प्रकाशित होने वाले प्रताप नामक समाचार पत्र में बिजोलिया किसान आंदोलन की जानकारी दिलवाई।
- विजय सिंह पथिक के खिलाफ गिरफ्तार वारंट निकाला गया।
- पथिक जी उमा जी के खेड़े में स्थित वीरान मकान में रहने लगे, यही स्थान बिजोलिया किसान आंदोलन का मुख्य केंद्र बना।
- 1918 में किसानों ने कर देना बंद कर असहयोग आंदोलन शुरू कर दिया।
- पथिक जी ने ऊपर माल पंच बोर्ड की स्थापना कर श्री मन्ना पटेल को इसका सरपंच नियुक्त किया।
- 1920 के नागपुर अधिवेशन में गांधी जी ने बिजोलिया किसान आंदोलन को आशीर्वाद दिया।
- 1919 में न्यायमूर्ति बिंदु लाल भट्टाचार्य की अध्यक्षता में महाराणा ने जांच आयोग गठित किया।
- आयोग ने सभी लागबाग बंद करने तथा किसानों को जेल से रिहा करने की सिफारिश की।
- लेकिन महाराणा ने कोई निर्णय नहीं लिया।
- 1922 में एन जी जी रोबोट के प्रयासों से किसानों के जागीरदारों के मध्य समझौता हुआ।
- जिसमें 84 में से 35 लगान बंद कर दिए गए।
- 1927 में इस आंदोलन की कमान माणिक्य लाल वर्मा को सौंपी गई।
- किसान आंदोलन का अंत 1971 ई. में हुआ।
- मेवाड़ के प्रधानमंत्री सर टी विजय राघवाचार्य के आदेश से तत्कालीन राजस्व मंत्री डॉ मोहन सिंह मेहता मैं ब्रिटिश प्रेसिडेंट विक्की लेंस बिजोलिया गए।
- माणिक्य लाल वर्मा जी व अन्य किसानों से बातचीत कर उनकी समस्याओं का समाधान करवाया।
- बिजोलिया किसान आंदोलन भारत का प्रथम संगठित, अहिंसात्मक व सबसे लंबा लगभग 44 वर्षों तक चलने वाला आंदोलन था।
- बेंगू किसान आंदोलन
- बे गू के किसानों से 25 प्रकार की लालबाग कर ली जाती थी।
- यह गांव पहले भीलवाड़ा में ,वर्तमान में चित्तौड़गढ़ में स्थित है।
- 1921 में आंदोलन का शुभारंभ मेनाल नामक स्थान के भैरव कुंड से हुआ।
- जिसका नेतृत्व रामनारायण चौधरी ने किया।
- 1923 में किसानों के ठाकुर अनूप सिंह के मध्य समझौता हुआ जिसे मेवाड़ सरकार ने बोल्शेविक समझौते की संज्ञा दी।
- मेवाड़ सरकार ने इस मामले की जांच हेतु ट्रेंस आयोग गठित किया, जिसने चार मामूली लागतो को छोड़कर शेष सभी लागतो और बेगार को उचित ठहराया।
- 13 जुलाई 1922 में ट्रेन चाहिए को पर विचार करने के लिए एक सभा बुलाई गई।
- इस सभा पर ट्रेंच ने घेर कर गोली चला दी, इसमें रूपा जी और कृपा जी धाकड़ नामक 2 किसान शहीद हो गए।
- रामनारायण चौधरी के बाद माणिक्य लाल वर्मा ने आंदोलन का नेतृत्व किया और बेंगू किसान आंदोलन 1925 में समाप्त हुआ।
बूंदी किसान आंदोलन
- बूंदी के किसानों को 25 प्रकार के लागबाग जागीरदार को देनी पड़ती थी।
- 1922 में किसानों ने बूंदी प्रशासन के खिलाफ आंदोलन शुरू कर दिया।
- 1922 में बूंदी सरकार ने किसानों को लागबाग में कुछ रियायतो की घोषणा कर दी।
- बूंदी किसान आंदोलन का नेतृत्व पंडित नेयनू राम शर्मा ने किया।
- 2 अप्रैल 1923 में डब्बी नामक स्थान पर किसानों की सभा पर सरकारी सैनिकों ने अंधाधुंध गोलियां चलानी शुरू कर दी ।
- इस गोलीकांड में झंडा गीत गाते हुए नानक जी भील और देवीलाल गुर्जर किसान शहीद हो गए।
- माणिक्य लाल वर्मा ने इस आंदोलन में सहायता प्रदान की।
- 1923 में यह आंदोलन समाप्त हो गया।
अलवर का किसान आंदोलन
- यहां पर भू राजस्व की सबसे गलत पद्धति "इजारा पद्धति" लागू थी। जिसके तहत ऊंची बोली बोलने वाले को निश्चित भूमि निश्चित अवधि के लिए दे दी जाती थी।
- 1924 में भूमि की नई दरों के विरोध में किसानों ने विद्रोह किया।
- इस आंदोलन का मुख्य केंद्र नींमूचना नामक गांव था।
- निमूचना में मई 1925 में भारी संख्या में राजपूत एकत्रित हुए, उन किसानों पर अलवर महाराजा के ए गठित आयोग ने गोलियां चला दी।
- इसमें सैकड़ों व्यक्तियों की मृत्यु हुई।
- गोली कांड की पूरी कहानी को तरुण राजस्थान समाचार पत्रिका में प्रकाशित किया गया।
- महात्मा गांधी ने इस हत्याकांड को जलियांवाला बाग हत्याकांड से ज्यादा वीभत्स बताया और दोहरा हत्याकांड की संज्ञा दी।
- 18 नवंबर 1925 में अलवर सरकार ने यह आदेश जारी किया किसानों से लागबाग पुराने बंदोबस्त के अनुसार ही लिया जाएगा।
- इस प्रकार नींमूचना किसान आंदोलन का अंत हुआ।
बीकानेर किसान आंदोलन
- यह आंदोलन पूरा टैक्स लेकर भी कम मात्रा में पानी देने के कारण हुआ।
- बीकानेर में खालसा भूमि का( 2/5 भाग) व जागीरी क्षेत्र(3/5 भाग) आता था।
- बेगार व लागबाग के संबंध में 1937 में जीवन चौधरी के नेतृत्व में गांव उदासर बीकानेर में हुआ।
- 30 मार्च 1949 में लोकप्रिय शासन की स्थापना के साथ ही किसानों की समस्या समाप्त हो सकी।
दूधवा-खारा किसान आंदोलन
- बीकानेर रियासत की दूधवा-खारा पता कांगड़ा गांव के किसानों ने जमीदारों के अत्याचारों के विरोध में आंदोलन किया।
- इस आंदोलन को 1944-45 में किसान नेता हनुमान सिंह और मेघाराम वैध के द्वारा सरंक्षण प्रदान किया गया।
चिड़ावा किसान आंदोलन
- उत्तर प्रदेश के रहने वाले मास्टर प्यारेलाल गुप्ता ने 1922 में अमर सेवा समिति की स्थापना की।
- जिसके सात सदस्यों को खेतड़ी नरेश अमर सिंह ने गिरफ्तार कर घोड़ों के पीछे बांध करके घसीट कर खेतड़ी की जेल में डाल दिया।
- मास्टर प्यारेलाल गुप्ता ने 3 दिन तक बिना अन्न जल ग्रहण किए बेहोश पड़े रहे।
- इसकी सूचना पूरे देश में बिजली की तरह फैल गई, इसी कारण क्रांतिकारियों के द्वारा इसका विरोध किया गया।
- 23 दिन बाद सभी क्रांतिकारियों को छोड़ दिया गय।
- इसीलिए मास्टर प्यारेलाल गुप्ता को चिड़ावा का गांधी कहा जाता है।
राजस्थान में प्रमुख जनजाति आंदोलन
- राजस्थान में भील, मीणा, गरासिया आदि जनजातियां प्राचीन काल से ही निवास करती आई है।
- राजस्थान के डूंगरपुर व बांसवाड़ा क्षेत्र में भील जनजाति का बाहुल्य है।
- मेवाड़ राज्य की रक्षा मे यहां के भीलों ने सदैव महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
- अंग्रेजों द्वारा लागू की गई आर्थिक सामाजिक व प्रशासनिक नीतियों के विरोध के फल स्वरुप सर्वप्रथम राजस्थानी जनजातियों व आदिवासियों ने आंदोलन किया।
भगत आंदोलन
- भीलो के भगत आंदोलन के प्रणेता गोविंद गिरी थे।
- इन्होंने भीलों में जागृति व सामाजिक सुधार लाने के लिए प्रयास किया। इसे भगत आंदोलन के नाम से जाना जाता है।
- 1883 ई. में गोविंद गिरी ने संप सभा का गठन किया।
- संप सभा का पहला अधिवेशन 1930 में मानगढ़ पहाड़ी में किया।
- 17 नवंबर 1913 को अंग्रेजी सेना ने मानगढ़ पहाड़ी को घेर कर उपस्थित भीलों पर गोली चला दी।
- जिसमें 1500 स्त्री-पुरुष शहीद हो गए।
- इसे भारत का दूसरा जलियांवाला बाग हत्याकांड कहते हैं।
- इस प्रकार इस आंदोलन को कुचल दिया गया।
एकी / भोमट आंदोलन
- इस आंदोलन के प्रणेता मोतीलाल तेजावत थे।
- इन्हें भील अपना मसीहा मानती थी अतः इन्हें बावजी के नाम से पुकारते थे।
- तेजावत के भीलों की समस्याओं को ध्यान में रखते हुए एक 11सूत्री जांच का एक प्रारूप तैयार करवाया।
- इसे मेवाड़ पुकार की संज्ञा दी गई।
- 9 मार्च 1922 को नींमडा गांव मे तेजावत जी का सम्मेलन हो रहा था जिस पर पुलिस ने गेर कर उन पर गोलियां चलाई।
- लगभग 1220 भील शहीद हो गए और तेजावत के भी पैर में गोली लगी।
- नींमडा हत्याकांड को एक दूसरे जलियांवाला बाग हत्याकांड की संज्ञा दी गई।
- अंग्रेजों ने व राज्य सरकार सेना ने दमन कर आंदोलन को समाप्त कर दिया।
- 3 जून 1922 को मोतीलाल तेजावत ने आत्मसमर्पण कर दिया।
- मोतीलाल तेजावत को मेवाड़ का गांधी भी कहा जाता है।
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