इस पोस्ट के माध्यम से आपको राजस्थान सामान्य ज्ञान का महत्वपूर्ण टॉपिक राजस्थान लोक कलाये की के बारे में बताने वाला हूँ | इस पोस्ट में राजस्थान की लोक कलाये के टॉपिक को बहुत अच्छे से विस्तार से बताया है |
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राजस्थान की लोंक कलाएं, राजस्थान जीके नोट्स |
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राजस्थान की लोक कलाये नोट्स
फड़ चित्रण
- रेजी अथवा खादी के कपड़े पर देवताओं की जीवन गाथाएं, धार्मिक व पौराणिक कथाएं, व ऐतिहासिक घटनाओं के चित्रित स्वरूप को ही थर्ड कहा जाता है।
- फड़ चित्रित करने का कार्य यहां के जोशी परिवार के छिपे करते हैं, जिन्हें चितेरा कहा जाता है।
- फड वाचन भोपो द्वारा ही किया जाता है
- राज्य में निम्न प्रकार की फड़ प्रचलित है -
i. पाबूजी की फड़
- नायक या आयडी भोपे इनकी फड़ का वाचन करते हैं।
- वाद्य यंत्र रावणहत्था होता है।
- सबसे लोकप्रिय फड़।
ii. देवनारायण जी की फड
- गुज्जर भोपा द्वारा वाचन जंतर वाद्य के साथ किया जाता है।
- देवनारायण जी की पड़ सबसे पुरानी सबसे लंबी गाथा वाली फाड़ है।
iii. रामदेव जी की फड़
- रामदेव जी की फड़ कामड़ जाति के भोपे रावण हत्था वाद्य यंत्र के साथ करते हैं।
- रामदेव जी की जीवन गाथा का चित्रण करने वाली रामदेव जी की फड़ का चित्रांकन सर्वप्रथम चौथमल चितेरे ने किया।
iv. राम दल्ला कृष्ण दल्ला की फड़
- भाट जाति के भोपे बिना किसी वाद्ययंत्र के इनकी फड का वाचन करते हैं।
- इन फड़ो में किसी एक व्यक्तित्व की संपूर्ण कथा का चित्रण न होकर समस्त चराचर जगत के लेखे जोखे के चित्रण के साथ राम अथवा कृष्ण के की प्रमुख घटनाओं का चित्रण किया जाता है।
- वाचक हाडोती क्षेत्र में अधिक है।
नोट :- भैसासुर की फड़ का वाचन नहीं करते।
राजस्थान की अन्य लोक कलाएं
i. मांडणा
- मांगलिक अवसरों पर महिलाओं द्वारा घर आंगन को लीप पोत कर हिरमिच व गैरू से अनामिका की सहायता से ज्यामिति अलंकरण बनाए जाते हैं। जी ने राजस्थान में मांडने कहते हैं।
ii. कठपुतली
- कठपुतली बनाने का काम आमतौर पर उदयपुर व चित्तौड़गढ़ में होता है।
iii. तोरण
- विवाह के अवसर पर दुल्हन के घर के मुख्य प्रवेश द्वार पर लटकाए जाने वाली लकड़ी की कलाकृति जिसके सिर पर मयूर या सुग्गा बना होता है।
- कहीं-कहीं तोरण के स्थान पर मोवन का भी प्रचलन है।
iv. कावड़
- कावड़ विविध कपाटों में खुलने व बंद होने वाली मंदिरनुमा काष्ठ कलाकृति है।
- जिस पर विभिन्न प्रकार के धार्मिक व पौराणिक कथाओं से संबंधित देवी देवताओं के मुख्य प्रसंग चित्रित होते हैं।
- कावड़ बनाने का कार्य गांव के खेरादी जाति के लोग करते हैं।
v. चोपड़े
- विवाह व अन्य मांगलिक अवसरों पर कुमकुम, अक्षत, चावल आदि रखने हेतु प्रयुक्त लकड़ी का पात्र।
vi. बेवाण
- लकड़ी के बने देव विमान, जिनकी देव झुलनी एकादशी को झांकी निकाली जाती है।
vii. सांझी
- यह राजस्थानी कन्याओं का ग्रीनवे कलापूर्ण व्रत उत्सव है। जो अश्विन की प्रतिपदा से लेकर पितृपक्ष के पूरे 15 दिनों तक मनाया जाता है।
- शान जी की प्रतिष्ठा लोक देवी पार्वती के रूप में भी है।
- जयपुर में लाडली जी के मंदिर उदयपुर का मछंदर नाथ मंदिर अपने सांझीयों के लिए प्रसिद्ध है।
viii. मेहंदी महावर
- मांगलिक लोक कला जिसे राजस्थान में सुहाग व सौभाग्य का शुभ चिन्हें माना जाता है।
ix. थापा
- हाथ की अंगुलियों के डप्पे दे कर दीवार पर जो चित्र बनाए जाते हैं वे थापे कहलाते हैं।
x. पाने
- विभिन्न देवी-देवताओं के कागज पर बने बड़े चित्र पाने कहलाते हैं।
xi. गोदना
- अंग चित्रांकन की विशिष्ट कला जिसमें अंगों में सुई अथवा बबूल के कांटे से आकृति बनाने के बाद उस पर कोयला और खेजड़ी के पत्तों का काला पाउडर डाल दिया जाता है।
- सूखने के बाद इसमें हरी झाईं उभर आती है इसे गुदना या गोदना कहते हैं।
xii. पिछवाईयां
- मंदिर में देवी देवताओं की मूर्तियों की पृष्ठभूमि में सजा हेतु बड़े आकार के पदों पर किया गया चित्रण पिछवाईया कहलाती है।
- नाथद्वारा की पिछवाईया विशेष रूप से प्रसिद्ध है।
xiii. वील
- राजस्थान के ग्रामीण क्षेत्रों में घर की छोटी मोटी चीजों को सुरक्षित रखने हेतु बनाई जाने वाली मिट्टी की महलनुमा चित्रित आकृति वील कहलाती है।
- मेघवाल जाति की महिलाएं इस कला में निपुण होती है।
xiv. बटेवडे या थापड़ा
- ढूंढा अंचल में बनाए जाने वाले गोबर के बटेवडे भी लोक कला के अनूठे दस्तावेज है।
- चारों तरफ से गोबर की लिपाई से बंद सूखे उपलों के ढेर को बटेवडा कहते हैं।
xvi. हीड़
- मिट्टी का बना हुआ पात्र जिसमें ग्रामीण अंचलों में दिवाली के दिन बच्चे तेल व रूई के बिन्नोले जलाकर अपने परिजनों के यहां जाते हैं तथा "हिडो दिवाली तेल मेंलो" कहकर बड़ों का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।
xvii. भराड़ी
- आदिवासी भीलों द्वारा लड़की के विवाह पर घर की दीवार पर बनाए जाने वाला देवी का चित्र।
xviii. कोठियां
- राजस्थान के ग्रामीण अंचलों में अनाज संग्रह हेतु प्रयुक्त मिट्टी के पात्र ।
xix. गोरबंद
- उंट के गले का आभूषण। इसके संबन्ध में 'गोरबंद नखरालो'लोकगीत प्रसिद्ध है।