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राजस्थान के संत सम्प्रदाय | राजस्थान सामान्य ज्ञान नोट्स

राजस्थान के संत सम्प्रदाय | राजस्थान कला व संस्कृति नोट्स

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राजस्थान के संत सम्प्रदाय | राजस्थान सामान्य ज्ञान नोट्स

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सगुण भक्ति धारा

शैव संप्रदाय

  • भगवान शिव की उपासना करने वाले शैव कहलाते हैं।
  • शैव मत के कापालिक एवं पाशुपात संप्रदायों का राजस्थान में काफी विस्तार हुआ है।

नाथ संप्रदाय

  • नाथ संप्रदाय के प्रवर्तक मुनि थे।
  • मत्स्येंद्रनाथ, भृतहरी, आदि प्रसिद्ध संत थे।
  • राजस्थान में नाथ मत की शाखाएं -
    • बेरंग पंथ पुष्कर के पास राताडूगा 
    • माननाथी पंत - ( जोधपुर का महा मंदिर)

प्रमुख वैष्णव संप्रदाय

रामानुज संप्रदाय

  • प्रवर्तक 11 वीं सदी में रामानुजाचार्य। 15 राम की पूजा अर्चना की जाती है।

रामानंदी संप्रदाय

  • भारत में रामानंद के शिष्य गुरु रामानंद के द्वारा वैष्णव आंदोलन परिवर्तित मत रामानंदी संप्रदाय कहलाया।
  • कबीर जी, धनाजी, पीपाजी,सेनानाई, रैदास आदि इन के प्रमुख शिष्य हुए।
  • कान में रामानंदी संप्रदाय का प्रारंभ संत श्री कृष्ण दास जी पयहारी ने किया।
  • इनकी प्रमुख पीठ गलता जी, जयपुर है।

निंबार्क संप्रदाय

  • आचार्य निंबार्क द्वारा 12 वीं सदी में परिवर्तित। राजस्थान में प्रधान पीठ किशनगढ़( अजमेर) के समीप सलेमाबाद में है।
  • जो आचार्य परशुराम द्वारा स्थापित की गई थी इसे हंस संप्रदाय भी कहते हैं।

वल्लभ संप्रदाय

  • प्रवर्तन वल्लवाआचार्य द्वारा सोनी सदी में( पुष्टिमार्गीय) वृंदावन में वल्लवाआचार्य के पुत्र विट्ठलनाथ ने "अष्टछाप कवि मंडली" का संगठन किया।
  • इस संप्रदाय की विभिन्न पीठ निम्न है-
    • प्रमुख पीठ : विट्ठलनाथजी, नाथद्वारा
    • मथुरेश जी, कोटा 
    • द्वारकाधीश जी, कांकरोली
    • गोकुलनाथजी, गोकुल( उत्तर प्रदेश)
    • गोकुल चंद्र जी - कामवन( भरतपुर)
  • किशनगढ़ के शासक सावंत सिंह जी( भक्त नागरी दास) इस संप्रदाय के परम भक्त हो गए थे।

ब्रह्मा या गौड़ीय संप्रदाय

  • स्वामी माधवाचार्य द्वारा 12 वीं सदी में परिवर्तित। इस संप्रदाय को जन जन तक फैलाने का कार्य उनके गौरांग महाप्रभु चैतन्य ने किया।
  • उन्होंने रासलीला एवं संकीर्तनी को कृष्ण भक्ति का मध्यम बनाया।

निर्गुण भक्ति धारा

जसनाथी

  • संत जसनाथ जी द्वारा प्रवर्तित। प्रमुख पीठ कतरियासर (बीकानेर) । उपदेश : सिंभूदडा व कोंडा ग्रंथ में संग्रहित है।
  • अनुयायियों के लिए 36 धर्म नियम है। संप्रदाय के साधु जीवित समाधि लेते हैं।
  • धधकते अंगारों पर अग्नि नृत्य संप्रदाय की प्रमुख विशेषता है।
  • इस संप्रदाय के अधिकांश अनुयाई जाट है। 

बिश्नोई संप्रदाय

  • संप्रदाय के प्रमुख पीठ मुकाम तलवा( नोखा, बीकानेर) है।
  • संप्रदाय के प्रवर्तक जांभोजी थे।
  • जंभ सागर, जंभ संहिता, बिश्नोई धर्म प्रकाश प्रमुख ग्रंथ है।
  • अनुयायियों को 38 नियमों के पालन का उपदेश, जिनमें हरे वृक्षों के काटने पर रोक, जीवो पर दया करना, नशीली वस्तुओं के सेवन पर प्रतिबंध आदि प्रमुख है।
  • पर्यावरण सुरक्षा हेतु पुराना तक का बलिदान कर देने के लिए यह संप्रदाय प्रसिद्ध है।

दादू पंथ

  • दादू पंथ की प्रमुख पीठ नारायणा( जयपुर), प्रमुख शिष्य गरीब दास जी, मिस्कीन दास जी, मखना जी, रजब्ब जी, सुंदर दास जी थे।
  • उपदेश : दादू जी री वाणी व दादू जी रा दूहा मैं संग्रहीत।
  • भाषा - हिंदी मिश्रित सधूकड़ी। 
  • संत दादू को राजस्थान का कबीर कहा जाता है
  • नारायणा में भैराना पहाड़ी पर स्थित गुफा, जिसमें दादू जी ने समाधि ली।

लालदास जी संप्रदाय

  • मेवात क्षेत्र के मध्यकालीन संत लाल दास जी द्वारा प्रवर्तित। प्रमुख स्थल शेरपुरा एवं धोली दूव तथा नगला गांव।
  • अलवर भरतपुर के महल जाति के लोग इसके अनुयाई है।

चरणदासी पंथ

  • संत चरणदास जी(1703-1782) द्वारा प्रवर्तित। इनकी प्रमुख वीट दिल्ली संत जी का जन्म डेहरा( अलवर) मैं हुआ।
  • इन्होंने नादिरशाह के आक्रमण की भविष्यवाणी की थी।

रामस्नेही संप्रदाय

  • राजस्थान में रामस्नेही संप्रदाय का प्रवर्तन श्री राम चरण दास जी ने किया।
  • इसकी राजस्थान में चार प्रमुख पीठे हैं -
    • शाहपुरा(भीलवाड़ा) मुख्य पीठ - संत राम चरण द्वारा परिवर्तित।
    • रैण शाखा( मेड़ता, नागौर) - संत दरियाव जी द्वारा परिवर्तित।
    • सिंहथल शाखा( बीकानेर) - संत हरिराम दास जी द्वारा परिवर्तित। प्रमुख कृति निशानी थी।
    • खेड़ापा शाखा( जोधपुर) - संत रामदास जी द्वारा परिवर्तित।

निरंजनी संप्रदाय

  • प्रवर्तक संत हरिदास जी प्रमुख पीठ गाढ़ा ,डीडवाना (नागौर) में है।

राज्य के अन्य लोग संत

संत पीपा (1383-1453)

  • इनका जन्म गागरोन। संत रामानंद जी से ली। दर्जी समुदाय के आराध्य।
  • इनका प्रमुख मंदिर समदड़ी ग्राम, बाड़मेर में है जहां इला भरता है।
  • संत पीपा कुछ समय टोडा ग्राम, टोंक में भी रहे जहां पीपा जी की गुफा है।

संत सुंदरदास जी

  • दादू जी के परम शिष्य थे। इनका जन्म दोसा व निधन सांगानेर में हुआ।
  • उन्होंने दादू पंथ में नागा शाखा का प्रचार किया।
  • इनका प्रमुख ग्रंथ ज्ञान समुंदर, ज्ञान सवैया, सुंदर ग्रंथावली आदि।

मीरा

  • उनके जन्म का नाम पेमल था। पिता श्री रतन सिंह जी राठौड़ बाजोली के जागीरदार थे।
  • इनका विवाह मेवाड़ के महाराणा संग्राम सिंह(सांगा) के पुत्र भोजराज से हुआ।
  • पति की मृत्यु के बाद कृष्ण भक्ति में तल्लीन हो गई।
  • मीरा की पदावलीया प्रसिद्ध है। उनकी मृत्यु गुजरात के डाकोर स्थित रणछोड़ मंदिर में हुई।

संत मावजी

  • बागड़ प्रदेश के संत जिनका जन्म साबला ग्राम डूंगरपुर में हुआ।
  • प्रमुख मंदिर एवं पीठ : माही नदी के निकट साबला ग्राम। इन्होंने वागडी भाषा में कृष्ण लीलाओं की रचना की।
  • इनकी वाणी( उपदेश) चोपड़ा कहलाती है। यह कृष्ण के ने कलंकी अवतार के रूप में प्रतिष्ठापित है।

मुस्लिम संत

ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती

  • जन्म 1135 ई. मे संजरी(फारस) मे हुआ। चिश्ती सिलसिले के प्रमुख संत।
  • चौहान सम्राट पृथ्वीराज तृतीय के शासनकाल में राजस्थान में आए व क्रमस्थली अजमेर को बनाया।
  • हजरत शेख उस्मान हारुनी के शिष्य थे।
  • अजमेर में उनकी प्रसिद्ध दरगाह है जहां उसका विशाल मेला भरता है। यह हिंदू मुस्लिम सांप्रदायिक सद्भाव का सर्वोत्तम स्थल है।
  • ख्वाजा साहब का इंतकाल 1233 ई. अजमेर में हुआ।

नरहड़ के पीर

  • हजरत शक्कर बार पीर दरगाह : नरहड़ ग्राम चिड़ावा, झुंझुनू।
  • बांगड़ के धनी के रूप में प्रसिद्ध।

पीर फखरुद्दीन

  • गलियाकोट, डूंगरपुर में इनकी दरगाह है। जो दाऊदी बोहरा संप्रदाय का प्रमुख धार्मिक स्थल है।

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